मंगलवार, 7 नवंबर 2017

Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 4 Part 1 2016


Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 4 Part 1 2016



कथा का शुभारम्भ होता है ,कथा चलती रहती है ,पूर्ण नहीं होती ,विराम होता है कथा का। 

कथा लेखन का आरम्भ गोस्वामी तुलसी दास भगवान् शिव को सादर प्रणाम के साथ करते हैं। सम्वत १६३१ के चैत्र मास के  नौमी तिथि की संध्या के समय  इस  कथा का शुभारम्भ करते हैं ,पूरी कथा लिखी गई। लेकिन कब पूरी हुई गोस्वामी जी इसका संकेत नहीं देते हैं। गोस्वामी जी ने कहा शुभ आचरण आरम्भ किये जाते हैं ,सत्य आचरण आरम्भ किया जाता है ,उनका समापन नहीं होता ,कथा को विराम दिया जाता है इनका अंत नहीं किया जाता ,कथा चलती रहती है।  शुभ कार्य ,शुभ आचरण ,दान पुण्य आरम्भ किये जाते हैं पूर्ण नहीं किये जाते । चलते हैं चलते रहते हैं। 

इस समय ग्रह नक्षत्र की स्थिति वैसी ही थी जैसी त्रेता में   थी। 

नामकरण 

दादा जी के पास ,शंकर जी के पास पहुँच गए तुलसीदास -वे इस कथा का नामकरण करते हैं। 

'रामचरितमानस' एहि  नामा ,सुनत श्रवण पाईये विश्रामा .... 

इसका नामकरण करते हैं भगवान् शंकर। रामायण नाम नहीं रखा। मानस लिखा इसको -मानसरोवर कहा गया ।सरोवर की कोई मर्यादा नहीं होती जब चले जाओ ,अपना मैल धोने। विकार वासना से जो मुक्त हो चुके हैं वे रामायण की तरफ चले जायें । प्रभु मिलन की सीढ़ी है रामचरित मानस  जिसमें तीन डंडे शिव ने लगायें  हैं -राम ,चरित और मानस। चरित और मानस यदि ये दो डंडे ही  मनुष्य चढ़ जाए तो तीसरे पर तो राम  स्वत : मिल जाएंगे। 

चरित शुद्ध होता है सद्पुरुषों का  सानिद्य  करने से। 

मेरा तार हरि संग जोड़े ऐसा कोई संत मिले ...... 

रामायण का मतलब होता है राम का अयन ,राम का घर।

बड़े भाग पाए सत्संगा ,सत्संगत दुर्लभ संसारा 
मेरा तार हरि संग जोड़े ऐसा कोई संत मिले। 

दाता  ऐसा संत मिला दे ,मन की मेरी प्यास बुझा दे ,
मेरा हाथ कभी न छोड़े ऐसा कोई संत मिले।

मेरे भव के बंधन खोवे ऐसा कोई संत मिले। 

जीवन शुद्ध होता है श्रेष्ठ होता है सुसंगत से। जिस धर्म से परमात्मा मिलता है इसकी शिक्षा माँ बाप भी नहीं देते।सद्गुणों को भरने वाला ,आत्मा के विकास वाला धर्म नहीं बतलाते माँ बाप। कैसे भी पेट भरो ,पाप करके ,देश के साथ गद्दारी करके अपना पेट भरो।मन पवित्र करने वाला धर्म नहीं बतलाते।   

उदर भरे सोइ धर्म सिखावे 

मन पवित्र होता है कीर्तन करने से। जीभ हलकी होती है परमात्मा का कीर्तन करने से लेकिन पाप के कारण जीभ भारी हो जाती है हिलेगी नहीं जीभ हलकी होती है हरि नाम का स्मरण करने से। भगवान् का नाम लोगे जकड़ के पकड़ लेगी।हिलेगी नहीं जीभ ।  

मानस में दोनों हैं -हर चौपाई वेद का मन्त्र है। भगवद नाम का स्मरण करने से जीभ हलकी होती है मानस में ये दोनों मिलते हैं। तुलसीदास ने चौपाई नहीं उपनिषदों के सूत्र लिखें हैं। एक -एक मन्त्र से हमारा कल्याण हो सकता है। 

अवधूत दिव्य आत्माएं जो अंतरिक्ष में विचरण करती हैं कुम्भ मेले में आतीं हैं संतों का प्रवचन सुन ने आतीं हैं ,सतसंग में आती हैं। 

अथातो ब्रह्म जिज्ञासा 

जिज्ञासा लेकर जाओ संतों के पास उनकी परीक्षा लेने उन्हें परास्त करने के लिए मत जाइये। बहुत विनम्रता से बैठो साधुओं के ढिंग -जो संशय से समाधान की यात्रा करादे उसे ही राम कथा कहते हैं। संत इसे आसान बनाते है। 

संतत जपत शम्भू अविनाशी, 

शिव भगवान् ज्ञान गुण  राशि। 

उमा सहित जेहि जपत मुरारी। 

साधु  चरित शुभ चरित कपासु। 

साधु  समाज के कल्याण के लिए संसार में भेजा जाता है। अपने परित्राण के लिए नहीं। लेकिन जब साधु असाधु हो जाए तो भगवान् को आना पड़ता है। 

भरद्वाज ऋषि विमानों के माहिर थे ,विज़िटिंग प्रोफेसर थे श्री लंका तक क्लास लेने जाते थे। पुष्पक विमान इन्हीं की देख रेख में बना था। जब विमान में कोई खराबी आती है भरद्वाज ऋषि ही ठीक करने जाते हैं। ये विमान मन की ऊर्जा से चलता है। एक बार पुष्पक विमान खराब हो जाता है विमान चलता नहीं भगवान् राम से भी क्योंकि उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा है।शिव स्तुति करने से वे स्वयं पाप मुक्त होते हैं।  ऐसा वह भारद्वाज मुनि के अनुरोध पर करते हैं।  

एक बार  त्रेता युग में शंकर जी भवानी को लेकर कथा सुन ने चले। कथा सुन ने में दूरी बाधक नहीं होती। कथा के लिए मन चाहिए। सब लोग कथा नहीं सुन सकते। 

गृह कारज नाना जंजाला 

ते अतिदुर्गम शैल विशाला। 

घर परिवार के जो काम हैं ये नाना प्रकार के जंजाल हैं काम कभी नहीं निपटता ,काम ज़िंदगी भरे लगे रहेंगे ,कथा की गंगा कभी -कभी  आती है। 

कथा कौन सुन सकता है ?

अति हरि कृपा जाइ पर होइ 

उसी के पैर  कथा की ओर  चलेंगे। भगवान जिसे चाहते हैं उसे सौ झंझटों से भी ले आएंगे कथा में । भगवान् के आयोजन में भी वही आ सकता है जिसे भगवान् चाहते हैं।अगर भगवान की घंटी आपके फोन पर घनघनाई है इसका मतलब यह है भगवान  ने आपको याद किया है। सती   कथा सुन ने नहीं आना चाहती।  भगवान् यहां सन्देश देते हैं अकेले कथा सुन ने मत जाओ। 
जब किसी प्रकार का पूर्वाग्रह लेकर व्यक्ति आता है तब कथा में कुछ हाथ नहीं आता। कथा सुन ने विनम्रता में और खाली हाथ आना है।खाली घड़ा लेकर आना है मन का।  

कथा कोई कोई ही सुनता है। जो सुन लेता है उसका बेड़ा पार हो जाता है। कथा डूबकर पीयो , कानों से डूबकर।वैसे सुनो जैसे मरीज़ डॉ. की बातें और सलाह सुनता है मुंह खोलकर।प्यासा देखता है पानी की धार को। 

कथा सुन महेश बहुत खुश होकर कैलाश की ओर लौटते हैं।

'संग सती जग जननी भवानी '    -कहते  हैं ऋषि जगत  माँ सती को लेकिन जब सती लौटती हैं तो यही ऋषि उन्हें दक्ष की बेटी सम्बोधित करके चौपाई पढ़ते हैं। जिसे कथा से प्रेम नहीं है वह ऋषि के लिए भी वरेण्य नहीं है। 

मार्ग में शंकर को आर्त आवाज़ सुनाई देती है शंकर पहचान लेते हैं -ये स्वर तो मेरे प्रभु के हैं लीला चल रही हैं -सीते -सीते कहते विलाप करते दीखते हैं राम । सती आशंकित होती हैं शंकर प्रणाम करते हैं। सती कहती है -ये ब्रह्म कैसे हैं इन्ह्ने मालूम नहीं इनकी घरवाली को कौन ले गया। ये साधारण कामी व्यक्ति की तरह पत्नी के वियोग में विलाप कर रहे हैं। ब्रह्म तो सर्वव्यापी होता है ये ब्रह्म कैसे हो गए ?या तो मुझे समझाओ ,वरना तो मैं परीक्षा लूंगी। 

कितने तर्क दिए शंकरजी ने सती टस से मस नहीं हुईं ,प्रणाम नहीं किया। बुद्धि परीक्षा लेती है और भक्ति समर्पण करती है -हम जैसे हैं वैसे तेरे चरणों में आये हैं।शंकर भक्त हैं। सीता भक्ति हैं।  

मुरारी बापू कहते हैं तीन लोगों को समझाना बड़ा मुश्किल है :

(१ )पत्नी 
(२ )परिवार के सदस्य 
(३ )पड़ोसी ,

शिव अंदर -अंदर कुढ़ गए -

मोरे कहे न संशय जाइ ,
विधि विपरीत भलाई नाहिं। 

शंकर जी विवेक के मूल हैं धर्म के ज्ञान के मूल हैं लेकिन सती मानने को तैयार नहीं है सती विधि विपरीत जा रही है (विधि माने संविधान ). 

हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ 

जब तेरी विधि बिगड़ेगी ,तू विधि के विपरीत जाएगा तब प्राणी तेरी हानि होगी। दशरथ विधि के विपरीत गए इसलिए अपयश मिला। काम -रस में गए नाम -रस में नहीं। हमारी जीवन शैली की विधि बिगड़ती है तब हमें बदलाव की जरूरत होती है। कथा यही संकेत दे रही है यहां। अगर आपने बदलने में देरी की आपका स्वभाव अशांत हो जाएगा। 

शिव हथियार डाल देते हैं मन में सोचते हैं अब तू जलेगी ,कोई नहीं रोक सकता इसे। 

होइए है वही ,जो राम रचि  रखा ,

को करि तरक ,बढ़ावे साखा।

शिव समर्पण कर गए देवी चली परीक्षा लेने। नकली सीता जी का वेश बना लिया ये परखने के लिए कि वनवासी राजकुमार ब्रह्म हैं या नहीं। 
संदेश यही है बड़े लोगों के वेश की नकल मत करो। जैसे ही सती सामने आकर खड़ी हुईं ,द्बंद्व में आ गए भगवान् -

जोरि  पाणि  प्रभु कीन्ह प्रणाम  

सीता जी तो भक्ति की प्रतीक हैं ये तो नकली सीता है इससे तो दूर से ही हाथ जोड़ लेने चाहिए। जब मानसिक उलझन होती है धर्म संकट होता है तब व्यक्ति  पिता को याद करता है इसलिए भगवान् कहते हैं मैं दशरथ पुत्र राम हूँ। दशरथ धर्म के भी प्रतीक हैं यहां। 

राम तो साक्षात धर्म हैं आज धर्म भी संकट में आ गया। भगवान् कहते हैं जब धर्मसंकट में फंस जाओ अपना  कर्तव्य ,अपना आसन ,अपना स्तर याद करो -मैं करने क्या जा रहा हूं बस इतना सोच लो । अपने कर्तव्य -धर्म को उस समय याद करो बच जाओगे मैं कौन हूँ ,किसका पुत्र हूँ।राम यही सोचते हैं। 

 सती इस समय अधर्म के मार्ग पर है  पति को छोड़ चुकी हैं। 

'अरे वृषकेतु (शंकर जी )कहाँ है 'भगवान् ने कहा -वृषकेतु धरम की ध्वजा को कहते हैं राम कहते हैं प्रतीक तौर पर सती  से आज आपका धर्म ध्वज कहाँ रह गया?धर्म को छोड़कर आप अधर्म  के मार्ग पर अकेले ?नारी का एक ही धर्म है पति का सानिद्य प्राप्त करते रहना। पति की बात सुनना मानना। 

आज अधिकार जताये जा रहे हैं कर्तव्य नहीं बताये जाते।कचहरी तमाम तरह के ऊलजुलूल निर्णय औरत के हक़ में सुना रही है।  
जब भी महिला अकेले जाएगी संकट आएगा ,कोई बचा नहीं सकता ,आप शास्त्र मानो या न मानो - आपका मन है।परन्तु शास्त्र यही कहता है। 

मैं शंकर कर कहा न माना 

घबरा कर सती शंकर के पास लौट आईं। शंकर ने कहा सच बोला  -परीक्षा ली या नहीं। सरासर झूठ बोल दिया सती ने ,एक और अधर्म कर दिया।परीक्षा नहीं ली ,आपकी तरह प्रणाम कर लौट आई।  

कछु न परीक्षा लिन्ह गोसाईं 

खालिस  सौ फीसद  झूठ बोल दिया -

कीन्ह प्रणाम तुम्हारे नाईं 

सती जो कीन्ह चरित सब जाना -


शंकर जी ने आँख बंद की ध्यान लगाया और सब जान लिया -सती झूठ बोल रहीं हैं। आँख में आँख डालकर देखा शंकर ने सती  की. आँखों में आँख कभी झूठ नहीं बोलती।ओंठ झूठ बोल देते हैं। गुरु की आँखों में स्केनर होता है एक्स -रे मशीन होती है वह सब जान लेता है। अरे तुमने मेरी माँ का वेश बनाया है प्रभु ने तुम्हें प्रणाम किया। उन्होंने सब जान लिया था। 

शंकर ने मन में कठोर संकल्प लिया -अब तुम मेरी पत्नी -रूप होकर नहीं रह सकती ,तुमने मेरी माँ का भेष भरा। 

शंकर जी का सत्य किसी के प्राणों का हरण नहीं करना चाहता।सती  पूछती है आकाशवाणी हो रही है मुझे भी बताओ तुमने क्या संकल्प लिया। यहां सन्देश यह है ऐसा सत्य मत बोलिये जिससे समाज टूटता हो समाज में विघटन पैदा होता हो किसी की जान जाती हो। शंकर जानते हैं सच बोला तो सती जान दे देंगी।  

शंकर सहज सरूप संवारा ,

लागि समाधि अखंड अपारा। 

शंकर जी का सहज स्वभाव है समाधि। उन्होंने वाणी से नहीं बोला -हाव भाव से प्रकट कर दिया देवी आज से आपका हमारा सम्बन्ध नहीं रहा। और सती फ़ूट  फ़ूट कर रोती  हैं। शंकर समाधिस्थ हैं। 

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