रविवार, 4 जून 2017

हमें विशाल रोगों ने या अवगुणों ने घेर रखा है। जैसे के अविद्या ,असत्य और षदरिपु यानी की कमज़ोरी। ये कमज़ोरी और असत्य ही है जिनकी वजह से ये जानते हुए भी कि आप हर जगह हैं हम अपने कान और नेत्रों की ही बात मानते हैं।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं  पुष्टिवर्धनं। 

उर्वारुकमिव बंधनां मृत्योर्मुक्षीय   माम्रतात || 

यह महामृत्युंजय मंत्र ऋगवेद से उत्पन्न है। इसके उच्चारण मात्र से मृत्यु का भय  हर जाता है। मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी यह मंत्र सरल कर देता है। महामृत्युंजय के मन्त्र का जाप १ ० ८ बार करने से इच्छित फल प्राप्ति होती है। 

 आइये इस महामंत्र को गहराई से समझें :

हालाकि यह मंत्र ॐ शब्द से आरम्भ होता है लेकिन ऋग्वेद में ये ॐ शब्द नहीं हैं। यह ॐ शब्द हर मंत्र के आरम्भ में श्रीगणेश के स्मरण में जोड़ दिया जाता है ताकि मंत्र का जाप निर्विघ्न हो सके। 

त्रयम्बकं (त्र्यंबकं ) -ये शब्द शिव के  तीन नेत्रों का प्रतीक है। इसमें -

त्र्य -का मतलब तीन 

अम्बकम -का अर्थ है आँखें या नेत्र। 

यही 'ब्रह्मा -विष्णु -महेश ' यानी त्रिमूर्ति का प्रतीक है। त्र्यम्बकम शब्द को फिर एक बार गहराई से देखें -इस शब्द में एक और शब्द छिपा हुआ है -अम्बा यानी महाशक्ति जिसमें सरस्वती -लक्ष्मी -गौरी समाई है। यानी एक ही त्र्यंबकम शब्द में शिव और शक्ति का वास है। 

यजा-महे  यानी मैं आपका गुणगान करता हूँ। 

सुगन्धिं -यानी सुगंध ये सुगंध है प्राण -प्रभु ,उपस्थिति एवं आत्मबल का। 

इसी सुगंध से मानव त्रियंबकं की आराधना करते हैं। 

पुष्टिवर्धनं -यानी हे , हर !संसार तुम्ही से आरम्भ होता है और तुम्ही में उसी का अंत है। 

पुष्टिवर्धनं यानी हितकर (हितकारी ). 

तुम्हारा आदि अंत और मध्य नहीं है। हम सब तुम्हारे बच्चें हैं। आप ही परमपिता हो। आप ही हमें वर दे सकते हो। 

उर्वारुक्मेव -

यहां उर्वा का अर्थ विशाल है। और -

रुक्मेव का मतलब है -रोग। 

इसलिए उर्वारुकमिव का मतलब है हमें विशाल रोगों ने या अवगुणों ने घेर रखा है। जैसे के अविद्या ,असत्य और षदरिपु यानी की कमज़ोरी। ये कमज़ोरी और असत्य ही है जिनकी वजह से ये जानते हुए भी कि आप हर जगह हैं हम अपने कान और नेत्रों की ही बात मानते हैं। 

बंधनां  -इस शब्द को उर्वारुकमिव के साथ पढ़ना चाहिए।तब इसका अर्थ निकलता है ,जिन विशाल अवगुणों से हमें बाँध के रखा है यानी उर्वारुकमिव बंधनां। 

मृत्योर मोक्ष्य -अर्थात जिन अवगुणों ने हमें बांध के रखा है जिसकी वजह से ही हमें अकस्मात मृत्यु का सामना करना पड़ता है बदकिस्मती से हमें बाँध के रखा गया है और जन्म मृत्यु के इस चक्र से हमें मोक्ष नहीं मिलता, इसी चक्र से हमें मोक्ष दिलाइये। 

यमां  -अमृतात-अर्थात  आप ही अमृत दीजिये जिससे मुझे मोक्ष एवं निर्वाण प्राप्ति हो। 

https://www.youtube.com/watch?v=Br3Ed_D2ydc 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें