शनिवार, 27 मई 2017

"इक रुकी हुई कविता मेरी ,अधपकी हुई भविता मेरी "-कमांडर निशांत शर्मा

"इक रुकी हुई कविता मेरी ,अधपकी हुई भविता मेरी "-कमांडर निशांत शर्मा 
                               (१) 
              इक रुकी हुई कविता मेरी ,

            अधपकी हुई भविता मेरी ,

            कुछ  आज यूं पूरी हो जाए,

            कुछ बादल गरजें सूरज पर ,

           ये शाम सिन्दूरी हो जाए। 

                         (२)
           बस खामखाँ की बातों में ,

          यूँ हम तुम जाया हो बैठे ,

          दो पल और बैठो संग मेरे ,

          कुछ बात ज़रूरी हो जाए। 

                      (३) 

          इक उम्र गुज़र गई सोने में ,

         खाबों को बुनकर खोने में ,

        कुछ ख्वाहिशों की अर्ज़ी को ,

         बस आज स्वीकृति हो जाए। 

                   (४ )

         रस्मों -कसमों  , कर्ज़ों -फ़र्ज़ों ,

         की तानाशही कौन सहे  ,

        अब सर आँखों पे हुक्म -ए -दिल ,

        कुछ 'जी -हुज़ूरी ' हो जाए ,

                  (५) 

         अच्छे -अच्छे रिश्तों को भी ,

        नज़दीकियों ने  तोड़ा है,

        कुछ तुम ठहरो कुछ हम संभले  ,

        अब फिर से दूरी हो जाए ,

        इक रुकी हुई कविता मेरी ,

        बस आज यूँ पूरी हो जाए। 


        प्रस्तुति :वीरुभाई 

         

  



           

तब कांग्रेस का कथित थिंक टेंक कहने लगता है

हमें आज भी हमदर्दी है १३२ साला कांग्रेस से जो बहुत दम्भ से 

कहती है कांग्रेस में विचारकों की कोई कमी नहीं है 

लेकिन जब पाकिस्तानी प्रेम 

से संसिक्त मणिशंकर अइयर जैसे लोग 

एक तरफ पत्रकारों से बदसूलकी और 

दूसरी तरफ हुर्रियत की तरफ इस निगाह से देखते मिलते हैं 

:हुर्रियत 


थूक दे तो चाटने का मौक़ा मिले -

तब कांग्रेस का कथित थिंक टेंक कहने लगता है 

यह उनका निजी वक्तव्य है कांग्रेस का उससे कोई लेना देना 

नहीं है। 

बुधवार, 24 मई 2017

कविता :देशभक्ति के रंग ----- कमांडर निशांत शर्मा।

कविता :देशभक्ति के रंग
----- कमांडर निशांत शर्मा।
तुझको मेरे मुझको तेरे प्यार का आभास हो,इंसान की इंसान से इंसानियत की आस हो।
कौम- औ- धरम के अफ़साने बहाने भूलकर , राम का रौज़ा रखूँ मैं ईद का उपवास हो।
देशभक्ति के जुनूं का रंग न कोई जात हो ,हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं न एहसास हो।
सेज चंदन की मिले या हो नसीब दो गज़ ज़मीं ,इस वतन पे हो न्योंछावर अंतिम मेरी सांस हो।
खो रहा चैन -औ -अमन मज़हब ही मानो मर्ज़ हो ,राम में हो कुछ रहीम गीता कुरआन -ए -ख़ास हो।
मंदिर मस्जिद गिरजे गुरद्वारे ही जैसे रूठें हों ,मंदिर में 'अल्लाह हु अकबर 'गिरजे में अरदास हो।
मुझसे मेरा नाम औ ईमान तुम न पूछिए ,उत्तर -दाख्खिन पूरब पश्चिम हम वतन सब काश हों।
हाथ सिर और नज़रें तिरछी जो उठे मैं काट दूँ ,लहराए तिरंगा रक्त में लथपथ जो मेरी लाश हो।
६२३ ,आफिसर्स रेजिडेंशियल एरिया ,इंडियन नेवल अकादमी ,एज़िमला (कन्नूर )

प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )